रक़्स करने लगी है तन्हाई
दर्द लेने लगा है अंगड़ाई
चोट दुखने लगी पुरानी फिर
जब से चलने लगी है पुरवाई
अब के सावन गया है फिर सूखा
कब से सूखी पड़ी है अमराई
दूर रहकर मुझे सताता है
कैसा ज़ालिम है मेरा हरजाई
कोई दस्तक है जानी पहचानी
झूम उट्ठी है आज अंगनाई