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रक्खा चराग़ जब भी हवा के मुक़ाबले / आदर्श गुलसिया

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रक्खा चराग़ जब भी हवा के मुक़ाबले
लगता रहा वफ़ा हो जफ़ा के मुक़ाबले

बीमार होकर हमने हक़ीक़त ये जान ली
लगती दुआ है पहले दवा के मुक़ाबले

इक मुफ़लिसी के साथ में दुनिया से सामना
ज्यूँ रोज़ मर रहा हूँ कज़ा के मुक़ाबले

गर ज़ख्म भर गए तो तुझे भूल जाऊंगा
इनको कुरेद आ के शिफ़ा के मुक़ाबले

गर प्यार से मिलोगे बढ़ेंगे ही यार दोस्त
बेहतर है झुक के मिलना अना के मुक़ाबले

धोका मिला जो उससे हुआ कितना सुर्ख़
आंखों में जो लहू है हिना के मुक़ाबले

तौबा करो गुनाह से अल्लाह बख़्श दे
तौबा बहुत बड़ी है सज़ा के मुक़ाबले

आवाज़ उसने दी तो थी आदर्श बार-बार
मैंने क़दम न रोके सदा के मुक़ाबले