भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रक्त कमल परती पर (कविता) / खगेंद्र ठाकुर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:42, 20 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=खगेंद्र ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यहाँ, वहाँ हर तरफ
   उठे हैं अनगिनत हाथ
हर तरफ से अनगिनत कदम
   चल पड़े हैं एक साथ
ये कदम चले हैं वहाँ
   बीहड़ पर्वत के पार से
ये कदम चले हैं
   गहरी घाटी के अंधियार से
पहाड़ों पर दौड़ कर
   चढ़े हैं ये मजबूत कदम
धुएं की नदी पार कर के
   बढ़े हैं ये जंगजू कदम
रोशनी के बिना
   घोर जंगल है जिन्दगी जहाँ
ये कदम बना रहे हैं
   किरणों के लिए द्वार वहाँ
अनगिनत हाथ
   उठे हैं जंगल से ऊपर
ये हाथ उठे हैं
   पूँजी के दानव से लड़ कर
ये हाथ हैं जो
   कोयले की आग में तपे हैं
लोहे जैसा गल कर जो
   इस्पात-से ढले हैं
इन हाथों ने
   अपनी मेहनत की बूंदों से
सजाया है
   पथरीले जीवन को फूलों से
हमने देखा हर हाथ
   यहाँ एक सूरज है
हर कदम यहाँ
   अमिट इतिहास-चरण है
इन्होंने गढ़ डाला है
   एक नया सूरज धरती पर
उगाये हैं यहाँ अनगिन
   रक्त कमल परती पर