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रगों में रेत भरकर रोज़ घटता जा रहा है / अनिरुद्ध सिन्हा

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रगों में रेत भरकर रोज़ घटता जा रहा है
वो दरिया तो किनारों से लिपटता जा रहा है

मेरा ये दायरा जबसे सिमटता जा रहा है
मेरा किरदार भी अब मुझसे कटता जा रहा है

ये दुनिया तो हमेशा की तरह रंगीं बहुत है
न जाने क्यों हमारा दिल उचटता जा रहा है

नई तहज़ीब अपना क़द बढ़ाती जा रही है
पुराना जो है धीरेधीरे हटता जा रहा है

वो जाहिल था वो जाहिल है वो जाहिल ही रहेगा
किताबों के वो बस पन्ने पलटता जा रहा है