Changes

रचते हुए / सुकेश साहनी

95 bytes removed, 00:53, 20 अगस्त 2020
या फिर
धरती पर रेंगने वाला तुच्छ प्राणी
यूँ यूं देखते ही न रहो–रहो-
बरसो
बादल की तरह
नदी की तरह
गिरो
जल -प्रपात की तरह
उगो
चट्टान पर बीज की तरह
खिलो
फूल की तरह
चीख़ोचीखोमुर्दो में ज़िन्दा जिन्दा आदमी की तरह
ठहरना अगर पड़े तो
ठहरो-
प्लेटफार्म पर सवारी गाड़ी की तरह
बरसोंबरसो,बहो, गिरो, खिलो, चीख़ोचीखो, ठहरो-काला लौह-खण्ड-सा पत्थर
भुरभुरा कर फिर आ मिलेगा
मिट्टी की धारा सेसे।रचने लगेगातुम्हारे संगगेहूँ की बालियाँ -0-
</poem>