Last modified on 21 अक्टूबर 2019, at 00:22

रचना बनाती हूँ / उर्मिल सत्यभूषण

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:22, 21 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यह जो उजास नित सूरज से झरता है
यह जो प्रकाश मेरे दिल में उतरता है
उसको ही गाती हूँ
रचना बनाती हूँ
तुम तक पहुँचाती हूँ
कुदरत का खेल मुझमें अचरज भर देता है
हौले हौले जो मेरी तरणि को खेता है
उसको ही गाती हूँ
रचना बनाती हूँ
तुम तक पहुँचाती हूँ
यह जो गगन से उसका
प्यार बरसता है
प्राणों को पुलकित करके
रूह तक पहुँचता हूँ
उसको ही गाती हूँ
रचना बनाती हूँ
तुम तक पहुँचाती हूँ
शब्दों के यान चढ़कर
ऊँचे मैं उड़ती हूँ
अनहद जो नाद अपने
अंतर में सुनती हूँ
उसको ही गाती हूँ
रचना बनाती हूँ
तुम तक पहुँचाती हूँ।