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रचना बनाती हूँ / उर्मिल सत्यभूषण

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यह जो उजास नित सूरज से झरता है
यह जो प्रकाश मेरे दिल में उतरता है
उसको ही गाती हूँ
रचना बनाती हूँ
तुम तक पहुँचाती हूँ
कुदरत का खेल मुझमें अचरज भर देता है
हौले हौले जो मेरी तरणि को खेता है
उसको ही गाती हूँ
रचना बनाती हूँ
तुम तक पहुँचाती हूँ
यह जो गगन से उसका
प्यार बरसता है
प्राणों को पुलकित करके
रूह तक पहुँचता हूँ
उसको ही गाती हूँ
रचना बनाती हूँ
तुम तक पहुँचाती हूँ
शब्दों के यान चढ़कर
ऊँचे मैं उड़ती हूँ
अनहद जो नाद अपने
अंतर में सुनती हूँ
उसको ही गाती हूँ
रचना बनाती हूँ
तुम तक पहुँचाती हूँ।