Last modified on 11 जून 2017, at 21:00

रचाव / राजूराम बिजारणियां

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:00, 11 जून 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कविता कोनी
फाङ’र धरती री कूख
चाण’चक उपङ्‍यो भंफोड.!
कविता कोनी
खींप री खिंपोळी में
पळता भूंडिया
जका
बगत-बेगत
उड। जावै
अचपळी पून रो
पकड। बां’वङो.!
नीं है कविता
खेत बिचाळै
खङ्‍यो अङवो
जको
ना खावै ना खावणद्‍यै।!
कविता सिरजण है
जीवण रो!
अनुभव री खात में
सबदां रा बीज भरै
नूंवीं-नकोर आंख्यां में
सुपनां रा
निरवाळा रंग।
अब बता-
कींकर कम हुवै
सिरजणहार रै सिरजण सूं
कवि रो रचाव.?