Last modified on 22 फ़रवरी 2010, at 05:01

रजनीगंधा / त्रिलोचन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:01, 22 फ़रवरी 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अनदिख टहनियाँ
रजनीगंधा की
हवा में
फैली हैं

साँसों में मेरी
लहराती हैं
चेतना को छेड़ कर
सिराओं में
जीवन का वेग
बन जाती हैं

इन के उलहने की गति
जान पाता हूँ
केवल परस से
रात रोक नहीं पाती