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रणू रौत (रावत) / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सिरीनगर<ref>श्रीनगर</ref> रन्द छयो, राजा प्रीतमशाई,
कुलावाली कोट मा, रन्दी रौतू औलाद।
हिंवा रौत को छयो भिवाँ रीत,
भिंवा रौत को छयो रण रौत।
रणू रौत होलो मालू<ref>बहादुरों</ref> मा को माल,
जैको डबराल्या<ref>ऊँचा</ref> माथो छ, खंखराल्या<ref>बड़ी-बड़ी</ref> जोंबा<ref>मूंछें</ref>,
घुण्डौं<ref>घुटने</ref> पौंछदी भुजा छन जोधा की,
मुंगर्याली<ref>मुगदर</ref> फीली<ref>टाँगें</ref> छन, मेरा मरदो।
माल की दूण<ref>दून, देहरादून</ref> रांजड़ा ऐन,
तौन कागली<ref>पत्र</ref> सिरीनगर भेज्याले।
रुखा रुखा बोल लेख्या तीखा लेख्या स्वाल।
बोला बोला मेरा कछड़ी<ref>कचहरी</ref> का ज्वानू
मेरा राज पर कैन त यो धावा बोले?
मेरा गढ़वाल मा कु इनु माल<ref>योद्धा</ref> होलू
जु भैर<ref>बाहर</ref> का मालू तैं जीतीक लालू।
तबरेक उठीक बोलदू छीलू भिमल्या,
ई तरई को माल होलो कुलवाली कोट,
हिंवा रौतन तरवार मारे।
रणू रौत् भी तरवार मारलो।
रणू रौत होलो तरवान्या ज्वान,
जैका<ref>जिसके</ref> मारख्वाल्या<ref>मारने वाले</ref> छन बेला<ref>भैंसे</ref>,
जैका चौसिंग्या<ref>चार सींग वाला</ref> खाडू<ref>मेढ़े</ref> होला, खोल्या होता कुत्ता।
कुलावाली कोट को वो रणू रौत,
मेरो भाणजो मालू साधीक लौलो।
प्रीतमशाई माराज तब कागली<ref>पत्र</ref> लेखद,
हे बुवा रणू रौत तू होलू बांको भड़,

भात खाई तख, हात धोई यख,
जामो<ref>वस्त्र</ref> पैरो तख तणी<ref>तनियाँ</ref> बाँधी यख।
कागली पौछीगे रौत का पास।
तब बांचद कागली रौत-
शेर जसा<ref>जैसे</ref> मोछ छया रौत,
तैका मणि<ref>हृदय</ref> का मान धड़कन लै गैन,
तैकों हातू की मुसली<ref>भुजाएँ</ref> बबलाण<ref>फड़कने</ref> लै गैन,
कण्डील<ref>काँटे</ref> वंश को कांडो जजरान्द<ref>सिहरना</ref>,
निरकुलो पाणी डाली सी हिरांद<ref>हिलते</ref>।
तब धाई<ref>आवाज</ref> लगौन्द रण राणो भिमला,
मैं त जांदू राणी सैणी<ref>समतल</ref> माल दूण,
मेरा वासता पकौ निरपाणो खीर।
राणी भिमला तब कुमजुल्या<ref>कुम्हला</ref> ह्वैगे,
नयी नयी माया छै ऊँ की ज्वानी की,
नयों नयों ब्यौं छो?
राणी भिमला डाली सी अलस्यैगे।
छोड़दी पथेणा, नेतर रांग-सा बुन्द
मैं छोड़ीक स्वामी तुम जुद्धक पैट्या,
सुमरदो तब रौत देबी झालीमाली,
ढेबरा<ref>भेड़</ref> लुकदा, बाखरा लुकदा,
मर्द कबी नी रुकदा, शेर कबी नी डरदा,
लुबा जंगी जामा पैरेण लैग्या,
सैणा<ref>समतल</ref> सिरीनगर ऐ गए रणू,
जैदेऊ माल्यान गर्दनी मालीक।
हे रौत आज को जैदेऊ त्वैक च बुवा।
तू छै मेरा रणू मालू मा को माल,
त्वैन मारणन बेटा त्वै चटा माल।

राजा को आदेसू पैक रौत चलीगे,
माल की दूण कुई माल बोदा-
ये तैं चुखनी <ref>चुटकियों में</ref> चुण्डला<ref>नोच</ref>, आँगूली<ref>अंगुलि</ref> मारला
तब छेत्री को हंकार चढ़े रौत,
मारे तैन मछुली-सी उफाट,
छोड़े उडाल तरवार।
तैन मुण्डू<ref>सिर</ref> का चौंरा<ref>ढेर</ref> लगैन,
तैन खूनन घट्ट रिंगैन<ref>चलाये</ref> मरदो।
तै माई मर्दू का चेलान मरदो,
सी केला सी कच्यैन, गोदड़ा सी फाड़ीन।
बैरी को नी रखे एक, ऋणना को-सी शेष।

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छीलू भिमल्या छयो रणू को मामा,
तै मामा को एक नौनो होलो झंक्रू।
झंक्रूहोलो मातो<ref>मत्त</ref> उदमातो<ref>उन्मत्त</ref>,
राणियों को रौंसियो<ref>रसिक</ref> होलो वो, फूलू को हौंसिया<ref>शौकीन</ref>।
रणू रौत की बौराणी<ref>बहू,</ref> भिमला पर
वैकी लगीं छै आँखी।
रणू तैं जुद्ध मा जायूं सुणीक
वो चली आये भिमला का पास।
सेवा मानी मेरी बौ<ref>भाभी</ref> भिमला।
ज्यू जागी दिऊर लाख बरीस।
धोलीन झंकरुन टलपला आँसू-
हे मेरी बौ, दादू<ref>बड़ा भाई</ref> मरीगे माल की दोण<ref>दून, देहरादून</ref>
तनी न वोल मेरा द्यूर<ref>देवर</ref> झँकरु,
उ मालू मा का माल छन,

ऊं सणी कु मारी सकदो?
सची माण मेरी बौ भिमला।
मैं दादू की गति<ref>दाहक्रिया</ref> करि आयूं मुगति।
तब राणी भिमला कनी कदी कारणा?
छोड़दे पथेणा<ref>आँसू</ref> नेतर राँग<ref>रांग जैसी</ref> जसा<ref>रांग जैसी</ref> बुन्द
तब झंक्रू बुझौणी बुझौद-बौ,
मामा पुफू का भाई होन्दान, कका<ref>चाचा</ref> बड़ौ<ref>ताऊ</ref> का दाई<ref>दुश्मन</ref>,
जनो माल दिदा छयो तनी मैं भी छऊं।
मैंन आज दादू का पलंका सूतो<ref>सोना</ref> होण,
मैंन दादू की थाल ठऊँ जिमण।
एक बात बोली द्यूर हैकी ना बोली,
मैं शेरना की सेज स्याल नी सेवाल्दो,
मैं स्वामी की थाल कुत्ता नी जिमौंदू।
माल की दूण रणू रौत सूतो छयो,
झाबीमाली देबी वैका सुपिना चलीगे।
चचलैक<ref>हड़बड़ा कर</ref> उठे रणू झबकैक<ref>झपक कर</ref> बैठे-
मेरी कुलावाली कोट कु चोरड़ा<ref>चोर</ref> आइगे।
लत दिन रात कैक रणू घर पौंछे,
रात चौक मा तब तैको जोड़ो<ref>जूता</ref> बजीगे।
जोड़ो बजीगे, घोड़ो खंकरैगे<ref>हिनहिनाया</ref>:
चोर जार कू नीन्दरा नी होन्दी,
झंक्रू का तरेण्डा<ref>तार</ref> टुटी गैन-
खड़ी उठ हे मेरी बौ<ref>भाभी</ref> भिमला।
भेर बजीगे माई को जोड़ो, घोड़ो खंकरैगे।
थरथर कम्पद झंकरू राम राम जम्पद-
अलै जाँदू<ref>बलैय्या</ref> बलै मेरी बौ भिमला।
मैं छनी आज बचौ।

शब्दार्थ
<references/>