भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रण-भेरी / शिशुपाल सिंह यादव ‘मुकुंद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काश्मीर घाटी में हलचल , झेलम में तूफान उठा l
गगन भेद बंगाल देश में, प्रलनयनकारी तूफान उठा ॥
यवन- उपद्रव घोर भयावह, सीमा पर उनकी फेरी
बुला रहा समरांगण युवको,बाजी देश में रणभेरी ॥

चंचल लहार उठी सागर में, धरती डगमग डोल उठी l
सन पैसठ शहीद की आत्मा,कानो में यह बोल उठी ॥
कर में निज बन्दूक सम्हालो, करो नहीं क्षण -भर देरी l
बुला रहा समरांगण युवको,बाजी देश में रणभेरी ॥

बाँध-बांध हथियार विहंसते, गाते गीत किसान चले l
मातृभूमि की रक्षा खातिर, हिन्दू और पठान चले ॥
पाक -चीन -अमरीका से ही, आई विपदा बहुतेरी l
बुला रहा समरांगण युवको,बाजी देश में रणभेरी ॥

गुरूद्वारे की कसम उठाकर, कर ले सिख्ख कृपाण चले l
जाट,गोरखे, गूजर- छत्रिय, साज-साज धनु बाण चले ॥
अरि के शीश कटे रण भीतर, लगे हजारों की ढेरी ॥
बुला रहा समरांगण युवको,बाजी देश में रणभेरी ॥

भुट्टो तथा याहया के सर,भारी गाज गिराना है l
बने अखण्ड हिन्द यह फिर से, पाकिस्तान मिटाना है ॥
शेख मुजीब छुड़ा लो तरुणों,दुनिया रीझ बने चेरी l
बुला रहा समरांगण युवको,बाजी देश में रणभेरी ॥