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रथ विकास का / मनोज जैन 'मधुर'

रथ विकास का
गाँव हमारे
आने वाला है।
अब भीखू की भूख ,
प्यास पुनिया
की जायेगी।
नहर हमारे गाँव,
खेत तक
चल कर आयेगी।
नेता,
फिर वादों की
फसल उगाने वाला है।

एक मित्र का
लगा मुखौटा
हमें लुभाता है।
सबकी दुखती रग पर
आकर
हाथ लगाता है।
रिश्ते अभी बनाकर
अभी
भुनाने वाला है।

लगे राम सा
किंतु चरित
रावण का जीता है।
मृग की छाल
ओढ़कर घर में
आया चीता है।
मांस नोच कर
जन-जन का
वह खाने वाला है।

राज पथों से
पग डंडी तक
यह जुड़ जाएगा।
तोते की मानिंद
हाथ से
फिर उड़ जाएगा।
जनमत
नेता जी के
पंख लगाने वाला है।