भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रनुबाई धणियेर जी सु बिनवऽ / निमाड़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

रनुबाई धणियेर जी सु बिनवऽ
पियाजी हम खऽ ते टीकी घड़ावऽ
टीकी का हम सांदुला।।
रनुबाई तुम खऽ ते टीकी नी साजऽ
तुम रूप का सांवला।।
पियाजी का सांवळा, हमारी माय मावसी सो भी साँवळई
पियाजी हम सांवळा, हमारी कूक बालुड़ो सो भी सांवळो
पियाजी हमारा मन्दिर तुम आओ,
तो तुम भी होओगा सांवळा जी।
व्हाँ सी देवी गवरल नीसरी
आगऽ जाइऽ न पणिहारी खऽ पूछऽ
पाणी भरन्ती हो बईण पणिहारी।
देखी म्हारी पियरा री बाट,
हम काई जाणां वो देवी गवरल।
आगऽ जाई नऽ गुहाळया खऽ पूछ,
ऊ बातवऽ तुम्हारो मायक्यो
धेनु चरावन्ता हो भाई गउधन्या
देखी म्हारा पियरा री वाट?
हम रोष भर्या संचरिया जी।
हम काई जाणां वो देवी गवरल
आगऽ जाई नऽ किरसाण खऽ पूछऽ
ऊ बतावऽ तुम्हारो मायक्यो।
हाळ हाकन्ता हो भाई किरसाण
देखी म्हारा पियरा री वाट।
हम काई जाणां हो देवी गवरल
आगऽ जाइ नऽ डोकरी खऽ पूछऽ
ऊ बतावऽ तुम्हारो मायक्यो।
सूत कातती ओ बाई डोकरी
देखी म्हारा पियरा री वाट
हम रोष भर्या संचरिया जी।
केळ, खजूर का वन भर्या जी
व्हाँ छे तुम्हारो पियरो। जाओ बेटी गवरल।।
व्हाँ सु भोला धणियेर निसर्या
आगऽ जाइ नऽ पणिहारी सू पूछऽ
पाणि भरन्ती हो पणिहारिन
देखी म्हारी गवरल नार
हम हंसतऽ विणसिया जी
केळ खजूर का वन भर्या जी
व्हाँ छे थारी गवरल नार
आगऽ जाइ नऽ देखी गवरल नार
धणियेर राजा बोलिया
टीकी सोहऽ गवरल नार
हम हंसतऽ विणसिया जी