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रप्पूँ-रप्पूँ / रमेश तैलंग

आज हो गया रिक्शा पंचर,
बोझ धरे बस्ते का सिर पर,
रप्पूँ-रप्पूँ, पैदल चलते-
चलते घर तक आया हूँ।

मम्मी, तुमको क्या बतलाऊँ,
भूख लगी है, पहले खाऊँ,
देखो, अपना लंच अभी तक
पूरा न खा पाया हूँ।

और सुनो, वह गुड्डी है ना,
उसकी बुक वापस है देना,
होमवर्क के चक्कर में
अब तक न लौटा पाया हूँ।