Last modified on 5 जून 2020, at 12:18

रस ना बुझाइल / अशोक द्विवेदी

Jalaj Mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:18, 5 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatBhojpuriRachna}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


गते-गते दिनवाँ ओराइल हो रामा
रस ना बुझाइल।

अँतरा क कोइलर कुहुँकि न पावे
महुवा न आपन नेहिया लुटावे
अमवो टिकोरवा न आइल हो रामा
रस ना बुझाइल।

चिउँ -चिऊँ चिकरेले, गुदिया चिरइया
हाँफे बछरुआ त हँकरेले गइया
पनिया पताले लुकाइल हो रामा
रस ना बुझाइल।

रूसल मनवाँ के,झुठिया मनावन
सीतल रतियो में दहके बिछावन
सपना, शहर उधियाइल हो रामा
रस ना बुझाइल।

तनी अउरी पवला के,हिरिस न छूटल
भितरा से कवनो किरिनियो न फूटल
सँइचल थतियो लुटाइल हो रामा
रस ना बुझाइल।