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रहते हुए क़रीब जुदा हो गए हो तुम / 'अनवर' साबरी

रहते हुए क़रीब जुदा हो गए हो तुम
बंदा-नवाज़ जैसे ख़ुदा हो गए हो तुम

मजबूरियों को देख के अहल-ए-नियाज़ की
शायान-ए-ऐतबार-ए-जफ़ा हो गए हो तुम

होता नहीं है कोई किसी का जहाँ रफ़ीक़
उन मंज़िलों में राह-नुमा हो गए हो तुम

तन्हा तुम्हीं हो जिन की मोहब्बत का आसरा
उन बे-कसों के दिल की दुआ हो गए हो तुम

दे कर नवेद-ए-नग़मा-ए-ग़म साज़-ए-इश्क़ को
टूटे हुए दिलों की सदा हो गए हो तुम

'अनवर' गुनाह-गार ओ ख़ता-वार ही सही
सर-ताबा-पा अता ही अता हो गए हो तुम