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रहने वालों को तेरे कूचे के ये क्या हो गया / मीर 'तस्कीन' देहलवी

रहने वालों को तेरे कूचे के ये क्या हो गया
मेरे आते ही यहाँ हँगामा बरपा हो गया

तेरा आना था तसुव्वुर में तमाशा शम्मा-रू
मेरे दिल पर रात परवानों का बलवा हो गया

ज़ब्त करता हूँ वले इस पर भी है यू जोश-ए-अश्क
गिर पड़ा जो आँख से क़तरा वो दरिया हो गया

इस क़दर माना बुरा मैं ने उदू का सुन के नाम
आख़िर उस की ऐसी बातों का तमाशा हो गया

क्या गज़ब है अल्तिजा पर मौत भी आती नहीं
तल्ख़-कामी पर हमारी ज़हर मीठा हो गया

देख यूँ ख़ाना-ख़राबी गै़र वाँ क़ाबिज़ हुआ
जिस के घर को हम ये समझे थे के अपना हो गया