भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रहस्यवाद-3 / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:05, 12 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

असीम का नंगापन ही सीमा है
रहस्यमयता वह आवरण है जिस से ढँक कर हम उसे
असीम बना देते हैं।
ज्ञान कहता है कि जो आवृत है, उस से मिलन नहीं हो सकता,
यद्यपि मिलन अनुभूति का क्षेत्र है,

अनुभूति कहती है कि जो नंगा है वह सुन्दर नहीं है,
यद्यपि सौन्दर्य-बोध ज्ञान का क्षेत्र है।
मैं इस पहेली को हल नहीं कर पाया हूँ, यद्यपि मैं रहस्यवादी हूँ,
क्या इसीलिए मैं केवल एक अणु हूँ
और जो मेरे आगे है वह एक असीम?