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रहा कुछ खौफ़ का ऐसा असर हर एक सीने में / अनिरुद्ध सिन्हा

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रहा कुछ खौफ़ का ऐसा असर हर एक सीने में
गुज़ारी उम्र लोगों ने लहू अपना ही पीने में

सुना है बाढ़ आई है पड़ोसी गाँव में लेकिन
यहाँ तो धूप की बारिश है सावन के महीने में

हमारे पास से सब लोग कुछ हटकर गुज़रते हैं
छुपी है मेहनतों की बू हमारे इस पसीने में

ज़रा सोचो तो क्यों डूबे हो तुम मझधार में आकर
कोई तो छेद निश्चित था तुम्हारे इस सफ़ीने में

सभी रिश्ते हैं मतलब के सभी मतलब के हैं साथी
मज़ा आता नहीं है अब किसी के साथ जीने में