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"रहीम दोहावली - 3" के अवतरणों में अंतर

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रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुंह स्याह।
+
नैन सलोने अधर मधु, कहि रहीम घटि कौन।
नहीं छनन को परतिया, नहीं करन को ब्याह॥201॥
+
मीठो भावै लोन पर, अरु मीठे पर लौन॥121॥
  
रहिमन रहिबो व भलो जौ लौं सील समूच।
+
पन्‍नग बेलि पतिव्रता, रति सम सुनो सुजान।
सील ढील जब देखिए, तुरन्त कीजिए कूच॥202॥
+
हिम रहीम बेली दही, सत जोजन दहियान॥122॥
  
रहिमन पैंडा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल।
+
परि रहिबो मरिबो भलो, सहिबो कठिन कलेस।
बिछलत पांव पिपीलिका, लोग लदावत बैल॥203॥
+
बामन है बलि को छल्‍यो, भलो दियो उपदेस॥123॥
  
रहिमन ब्याह बियाधि है, सकहु तो जाहु बचाय।
+
पसरि पत्र झँपहि पितहिं, सकुचि देत ससि सीत।
पायन बेड़ी पड़त है, ढोल बजाय बजाय॥204॥
+
कहु र‍हीम कुल कमल के, को बैरी को मीत॥124॥
  
रहिमन प्रिति सराहिए, मिले होत रंग दून।
+
पात पात को सींचिबो, बरी बरी को लौन।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून॥205॥
+
रहिमन ऐसी बुद्धि को, कहो बरैगो कौन॥125॥
  
रहिमन तब लगि ठहरिए, दान मान, सम्मान।
+
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
घटत मान देखिए जबहि, तुरतहिं करिय पयान॥206॥
+
अब दादुर बक्‍ता भए, हमको पूछत कौन॥126॥
  
राम नाम जान्या नहीं, जान्या सदा उपाधि।
+
पिय बियोग तें दुसह दुख, सूने दुख ते अंत।
कहि रहीम तिहि आपनो, जनम गंवायो बादि॥207॥
+
होत अंत ते फिर मिलन, तोरि सिधाए कंत॥127॥
  
रहिमन जगत बड़ाई की, कूकुर की पहिचानि।
+
पुरुष पूजें देवरा, तिय पूजें रघुनाथ।
प्रीति कैर मुख चाटई, बैर करे नत हानि॥208॥
+
कहँ रहीम दोउन बनै, पॅंड़ो बैल को साथ॥128॥
  
सबै कहावै लसकरी सब लसकर कहं जाय।
+
प्रीतम छबि नैनन बसी, पर छवि कहाँ समाय।
रहिमन सेल्ह जोई सहै, सो जागीरें खाय॥209॥
+
भरी सराय रहीम लखि, पथिक आप फिर जाय॥129॥
  
रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभु की थाक।
+
प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत नाहिं।
दांत दिखावत दीन है, चलत घिसावत नाक॥210॥
+
रहिमन मैन-तुरंग चढ़ि, चलिबो पाठक माहिं॥130॥
  
रहिमन छोटे नरन सों, होत बड़ों नहिं काम।
+
फरजी सह न ह्य सकै, गति टेढ़ी तासीर।
मढ़ो दमामो ना बने, सौ चूहे के चाम॥211॥
+
रहिमन सीधे चालसों, प्‍यादो होत वजीर॥131॥
  
रहिमन प्रीत न कीजिए, जस खीरा ने कीन।
+
बड़ माया को दोष यह, जो कबहूँ घटि जाय।
ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांके तीन॥212॥
+
तो रहीम मरिबो भलो, दुख सहि जिय बलाय॥132॥
  
रहिमन धोखे भाव से, मुख से निकसे राम।
+
बड़े दीन को दुख सुनो, लेत दया उर आनि।
पावत मूरन परम गति, कामादिक कौ धाम॥213॥
+
हरि हाथी सो कब हुतो, कहु र‍हीम पहिचानि॥133॥
  
रहिमन मनहि लगई कै, देखि लेहु किन कोय।
+
बड़े पेट के भरन को, है रहीम दुख बा‍ढ़ि।
नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय॥214॥
+
यातें हाथी हहरि कै, दयो दाँत द्वै का‍ढ़ि॥134॥
  
रहिमन असमय के परे, हित अनहित है जाय।
+
बड़े बड़ाई नहिं तजैं, लघु रहीम इतराइ।
बधिक बधै भृग बान सों, रुधिरै देत बताय॥215॥
+
राइ करौंदा होत है, कटहर होत न राइ॥135॥
  
लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार।
+
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल।
जो हानि मारै सीस में, ताही की तलवार॥216॥
+
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल॥1361।
  
रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल।
+
बढ़त रहीम धनाढ्य धन, धनौ धनी को जाइ।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥217॥
+
घटै बढ़ै बाको कहा, भीख माँगि जो खाइ॥137॥
  
रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय।
+
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह र‍हीम जिय सोस।
सुनि अठिलै है लोग सब, बांटि न लैहे कोय॥218॥
+
महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्‍यो परोस॥138॥
  
रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय।
+
बाँकी चितवन चित चढ़ी, सूधी तौ कछु धीम।
ताकी गैर अकास लौ, क्यों कालिमा होय॥219॥
+
गाँसी ते बढ़ि होत दुख, का‍ढ़ि कढ़त रहीम॥139॥
  
रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग।
+
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग॥220॥
+
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥140॥
  
रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत।
+
बिपति भए धन ना रहे, रहे जो लाख करोर।
चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत॥221॥
+
नभ तारे छिपि जात हैं, ज्‍यों रहीम भए भोर॥141॥
  
रहिमन विद्या बुद्धि नहीं, नहीं धरम जस दान।
+
भजौं तो काको मैं भजौं, तजौं तो काको आन।
भू पर जनम वृथा धरै, पसु बिन पूंछ विषान॥222॥
+
भजन तजन ते बिलग हैं, तेहि रहीम तू जान॥142॥
  
रहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन को फेर।
+
भलो भयो घर ते छुट्यो, हँस्‍यो सीस परिखेत।
जब नीकै दिन आइहैं, बनत न लगिहैं बेर॥223॥
+
काके काके नवत हम, अपन पेट के हेत॥143॥
  
रहिमन खोजे ऊख में, जहां रसनि की खानि।
+
भार झोंकि के भार में, रहिमन उतरे पार।
जहां गांठ तहं रस नहीं, यही प्रीति में हानि॥224॥
+
पै बूड़े मझधार में, जिनके सिर पर भार॥144॥
  
रहिमन को कोउ का करै, ज्वारी चोर लबार।
+
भावी काहू ना दही, भावी दह भगवान।
जो पत राखन हार, माखन चाखन हार॥225॥
+
भावी ऐसी प्रबल है, कहि रहीम यह जान॥145॥
  
रहिमन वे नर मर चुके, जो कहुं मांगन जांहि।
+
भावी या उनमान को, पांडव बनहि रहीम।
उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं॥226॥
+
जदपि गौरि सुनि बाँझ है, बरु है संभु अजीम॥146॥
  
रहिमन कबहुं बड़ेन के, नाहिं गरब को लेस।
+
भीत गिरी पाखान की, अररानी वहि ठाम।
भार धरे संसार को, तऊ कहावत सेस॥227॥
+
अब रहीम धोखो यहै, को लागै केहि काम॥147॥
  
रहिमन वहां न जाइए, जहां कपट को हेत।
+
भूप गनत लघु गुनिन को, गुनी गनत लघु भूप।
हम तन ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत॥228॥
+
रहिमन गिर तें भूमि लौं, लखों तो एकै रूप॥148॥
  
रहिमन रिस सहि तजत नहिं, बड़े प्रीति की पौरि।
+
मथत मथत माखन रहै, दही मही बिलगाय।
मूकन भारत आवई, नींद बिचारी दौरि॥229॥
+
रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय॥149॥
  
रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो न प्रीति।
+
मनिसिज माली की उपज, कहि रहीम नहिं जाय।
काटे चाटे स्वान के, दुहूं भांति विपरीति॥230॥
+
फल श्‍यामा के उर लगे, फूल श्‍याम उर आय॥150॥
  
रहिमन भेषज के किए, काल जीति जो जात।
+
मन से कहाँ रहिम प्रभु, दृग सो कहाँ दिवान।
बड़े-बड़े समरथ भये, तौ न कोउ मरि जात॥231॥
+
देखि दृगन जो आदरै, मन तेहि हाथ बिकान॥151॥
  
रहिमन जग जीवन बड़े, काहु देखे नैन।
+
मंदन के मरिहू गये, औगुन गुन सिराहिं।
जाय दसानन अछत ही, कपि लागे गथ लैन॥232॥
+
ज्‍यों रहीम बाँधहु बँधे, मराह ह्वै अधिकाहिं॥1521।
  
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
+
मनि मनिक महँगे किये, ससतो तृन जल नाज।
पानी भए न ऊबरैं, मोती मानुष चून॥233॥
+
याही ते हम जानियत, राम गरीब निवाज॥153॥
  
रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छांड़त साज।
+
महि नभ सर पंजर कियो, रहिमन बल अवसेष।
खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ॥234॥
+
सो अर्जुन बैराट घर, रहे नारि के भेष॥154॥
  
रहिमन तीन प्रकार ते, हित अनहित पहिचानि।
+
माँगे घटत रहीम पद, कितौ करौ बढ़ि काम।
पर बस परे, परोस बस, परे मामिला जानि॥235॥
+
तीन पैग बसुधा करो, तऊ बावनै नाम॥155॥
  
पांच रूप पांडव भए, रथ बाहक नलराज।
+
माँगे मुकरि न को गयो, केहि न त्‍यागियो साथ।
दुरदिन परे रहीम कहि, बड़े किए घटि काज॥236॥
+
माँगत आगे सुख लह्यो, ते रहीम रघुनाथ॥156॥
  
समय परे ओछे वचन, सबके सहै रहीम।
+
मान सरोवर ही मिले, हंसनि मुक्‍ता भोग।
सभा दुसासन पट गहै, गदा लिए रहे भीम॥237॥
+
सफरिन भरे रहीम सर, बक-बालकनहिं जोग॥157॥
  
रहिमन जा डर निसि पैर, ता दिन डर सब कोय।
+
मान सहित विष खाय के, संभु भये जगदीस।
पल पल करके लागते, देखु कहां धौ होय॥238॥
+
बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो सीस॥158॥
  
रहिमन रहिला की भले, जो परसै चितलाय।
+
माह मास लहि टेसुआ, मीन परे थल और।
परसत मन मैला करे सो मैदा जरि जाय॥239॥
+
त्‍यों रहीम जग जानिये, छुटे आपुने ठौर॥159॥
  
रहिमन यह तन सूप है, लीजै जगत पछोर।
+
मीन कटि जल धोइये, खाये अधिक पियास।
हलुकन को उड़ि जान है, गुरुए राखि बटोर॥240॥
+
रहिमन प्रीति सराहिये, मुयेउ मीन कै आस॥160॥
  
रहिमन गली है साकरी, दूजो ना ठहराहिं।
+
मुकता कर करपूर कर, चातक जीवन जोय।
आपु अहै तो हरि नहिं, हरि तो आपुन नाहिं॥241॥
+
एतो बड़ो रहीम जल, ब्‍याल बदन विष होय॥161॥
  
स्वारथ रचत रहीम सब, औगुनहूं जग मांहि।
+
मुनि नारी पाषान ही, कपि पसु गुह मातंग।
बड़े बड़े बैठे लखौ, पथ पथ कूबर छांहि॥242॥
+
तीनों तारे राम जू, तीनों मेरे अंग॥162॥
  
संपति भरम गंवाइ कै, हाथ रहत कछु नाहिं।
+
मूढ़ मंडली में सुजन, ठहरत नहीं बिसेषि।
ज्यों रहीम ससि रहत है, दिवस अकासहुं मांहि॥243॥
+
स्‍याम कचन में सेत ज्‍यों, दूरि कीजिअत देखि॥163॥
  
सर सूखै पंछी उड़ै, औरे सरन समाहिं।
+
यह न रहीम सराहिये, देन लेन की प्रीति।
दीन मीन बिन पंख के, कहु रहीम कहं जाहिं॥244॥
+
प्रानन बाजी राखिये, हारि होय कै जीति॥165॥
  
स्वासह तुरिय जो उच्चरै, तिय है निश्चल चित्त।
+
यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय।
पूत परा घर जानिए, रहिमन तीन पवित्त॥245॥
+
बैर, प्रीति, अभ्‍यास, जस, होत होत ही होय॥166॥
  
साधु सराहै साधुता, जती जोखिता जान।
+
यह रहीम मानै नहीं, दिल से नवा जो होय।
रहिमन सांचे सूर को, बैरी करे बखान॥246॥
+
चीता, चोर, कमान के, नये ते अवगुन होय॥167॥
  
संतत संपति जानि कै, सबको सब कुछ देत।
+
याते जान्‍यो मन भयो, जरि बरि भस्‍म बनाय।
दीन बन्धु बिन दीन की, को रहीम सुधि लेत॥247॥
+
रहिमन जाहि लगाइये, सो रूखो ह्वै जाय॥168॥
  
ससि की शीतल चांदनी, सुन्दर सबहिं सुहाय।
+
ये रहीम फीके दुवौ, जानि महा संतापु।
लगे चोर चित में लटी, घटि रहीम मन आय॥248॥
+
ज्‍यों तिय कुच आपुन गहे, आप बड़ाई आपु॥169॥
  
सीत हरत तम हरत नित, भुवन भरत नहि चूक।
+
ये रहीम दर-दर फिरै, माँगि मधुकरी खाहिं।
रहिमन तेहि रवि को कहा, जो घटि लखै उलूक॥249॥
+
यारो यारी छाँडि देउ, वे रहीम अब नाहिं॥170॥
  
ससि सुकेस साहस सलिल, मान सनेह रहीम।
+
यों रहीम गति बड़ेन की, ज्‍यों तुरंग व्‍यवहार।
बढ़त बड़त बढ़ि जात है, घटत घटत घटि सीम॥250॥
+
दाग दिवावत आपु तन, सही होत असवार॥171॥
  
यह न रहीम सराहिए, लेन देन की प्रीति।
+
यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय।
प्रानन बाजी राखिए, हार होय कै जीति॥251॥
+
ज्‍यों जल में छाया परे, काया भीतर नॉंय॥172॥
  
ये रहीम दर दर फिरहिं, मांगि मधुकरी खाहिं।
+
यों रहीम सुख दुख सहत, बड़े लोग सह साँति।
यारो यारी छोड़िए, वे रहीम अब नाहिं॥252॥
+
उवत चंद जेहि भाँति सो, अथवत ताही भाँति॥173॥
  
यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय।
+
रन, बन, ब्‍याधि, विपत्ति में, रहिमन मरै न रोय।
ज्यों जल में छाया परे, काया भीतर नाय॥253॥
+
जो रच्‍छक जननी जठर, सो हरि गये कि सोय॥174॥
  
रजपूती चांवर भरी, जो कदाच घटि जाय।
+
रहिमन अती न कीजिये, गहि रहिये निज कानि।
कै रहीम मरिबो भलो, कै स्वदेस तजि जाय॥254॥
+
सैजन अति फूले तऊ डार पात की हानि॥175॥
  
यों रहीम सुख होत है, बढ़त देखि निज गोत।
+
रहिमन अपने गोत को, सबै चहत उत्‍साह।
ज्यों बड़री अंखियां निरखि अंखियन को सुख होत॥255॥
+
मृ्ग उछरत आकाश को, भूमी खनत बराह॥176॥
  
हित रहीम इतनैं करैं, जाकी जिती बिसात।
+
रहिमन अपने पेट सौ, बहुत कह्यो समुझाय।
नहिं यह रहै न व रहे, रहै कहन को बात॥256॥
+
जो तू अन खाये रहे, तासों को अनखाय॥177॥
  
सबको सब कोऊ करैं, कै सलाम कै राम।
+
रहिमन अब वे बिरछ कहँ, जिनकी छॉह गंभीर।
हित रहीम तब जानिए, जब कछु अटकै काम॥257॥
+
बागन बिच बिच देखिअत, सेंहुड़, कुंज, करीर॥178॥
  
रौल बिगाड़े राज नैं, मौल बिगाड़े माल।
+
रहिमन असमय के परे, हित अनहित ह्वै जाय।
सनै सनै सरदार की, चुगल बिगाड़े चाल॥258॥
+
बधिक बधै मृग बानसों, रुधिरे देत बताय॥179॥
  
रहिमन कहत स्वपेट सों, क्यों न भयो तू पीठ।
+
रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ।
रीते अनरीतैं करैं, भरै बिगारैं दीठ॥259॥
+
जाहि निकारो गेह ते, कस भेद कहि देइ॥180॥
 
+
होत कृपा जो बड़ेन की, सो कदापि घट जाय।
+
तो रहीम मरिबो भलो, यह दुख सहो न जाय॥260॥
+
 
+
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
+
बाटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग॥261॥
+
 
+
होय न जाकी छांह ढिग, फल रहीम अति दूर।
+
बढ़िहू सो बिन काज की, तैसे तार खजूर॥262॥
+
 
+
हरी हरी करुना करी, सुनी जो सब ना टेर।
+
जग डग भरी उतावरी, हरी करी की बेर॥263॥
+
 
+
अनकिन्ही बातें करै, सोवत जागै जोय।
+
ताहि सिखाय जगायबो, रहिमन उचित न होय॥264॥
+
बिधना यह जिय जानिकै, सेसहि दिए न कान।
+
धरा मेरु सब डोलिहैं, तानसेन के तान॥265॥
+
 
+
एक उदर दो चोंच है, पंछी एक कुरंड।
+
कहि रहीम कैसे जिए, जुदे जुदे दो पिंड॥266॥
+
 
+
जो रहीम गति दीप की, सुत सपूत की सोय।
+
बड़ो उजेरो तेहि रहे, गए अंधेरो होय॥267॥
+
 
+
चिंता बुद्धि परखिए, टोटे परख त्रियाहि।
+
सगे कुबेला परखिए, ठाकुर गुनो किआहि॥268॥
+
 
+
चाह गई चिन्ता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
+
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥269॥
+
 
+
जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय।
+
ताको बुरा न मानिए, लेन कहां सो जाय॥270॥
+
 
+
खैंचि चढ़नि ढीली ढरनि, कहहु कौन यह प्रीति।
+
आजकाल मोहन गही, बसंदिया की रीति॥271॥
+
 
+
कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम।
+
काकी महिमा नहीं घटी, पर घर गए रहीम॥272॥
+
 
+
जो रहीम जग मारियो, नैन बान की चोट।
+
भगत भगत कोउ बचि गए, चरन कमल की ओट॥273॥
+
 
+
कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।
+
जैसी संगती बैठिए, तैसोई फल दीन॥274॥
+
 
+
पिय वियोग ते दुसह दुख, सुने दुख ते अन्त।
+
होत अन्त ते फल मिलन, तोरि सिधाए कन्त॥275॥
+
 
+
आदि रूप की परम दुति, घट घट रही समाई।
+
लघु मति ते मो मन रमन, अस्तुति कही न जाई॥276॥
+
 
+
नैन तृप्ति कछु होत है, निरखि जगत की भांति।
+
जाहि ताहि में पाइयत, आदि रूप की कांति॥277॥
+
 
+
उत्तम जाती ब्राह्ममी, देखत चित्त लुभाय।
+
परम पाप पल में हरत, परसत वाके पाय॥278॥
+
 
+
परजापति परमेशवरी, गंगा रूप समान।
+
जाके अंग तरंग में, करत नैन अस्नान॥279॥
+
 
+
रूप रंग रति राज में, खत रानी इतरान।
+
मानो रची बिरंचि पचि, कुसुम कनक में सान॥280॥
+
 
+
परस पाहन की मनो, धरे पूतरी अंग।
+
क्यों न होय कंचन बहू, जे बिलसै तिहि संग॥281॥
+
 
+
कबहुं देखावै जौहरनि, हंसि हंसि मानकलाल।
+
कबहुं चखते च्वै परै, टूटि मुकुत की माल॥282॥
+
 
+
जद्यपि नैननि ओट है, बिरह चोट बिन घाई।
+
पिय उर पीरा न करै, हीरा-सी गड़ि जाई॥283॥
+
 
+
कैथिनि कथन न पारई, प्रेम कथा मुख बैन।
+
छाती ही पाती मनों, लिखै मैन की सैन॥284॥
+
 
+
बरूनि बार लेखिनि करै, मसि का जरि भरि लेई।
+
प्रेमाक्षर लिखि नैन ते, पिये बांचन को देई॥285॥
+
 
+
पलक म टारै बदन ते, पलक मारै मित्र।
+
नेकु न चित ते ऊतरै, ज्यों कागद में चित्र॥286॥
+
सोभित मुख ऊपर धरै, सदा सुरत मैदान।
+
छूरी लरै बंदूकची, भौहें रूप कमान॥287॥
+
 
+
कामेश्वर नैननि धरै, करत प्रेम की केलि।
+
नैन माहिं चोवा मटे, छोरन माहि फुलेलि॥288॥
+
 
+
करै न काहू की सका, सकिकन जोबन रूप।
+
सदा सरम जल ते मरी, रहे चिबुक कै रूप॥289॥
+
 
+
करै गुमान कमागरी, भौंह कमान चढ़ाइ।
+
पिय कर महि जब खैंचई, फिर कमान सी जाइ॥290॥
+
 
+
सीस चूंदरी निरख मन, परत प्रेम के जार।
+
प्रान इजारै लेत है, वाकी लाल इजार॥291॥
+
 
+
जोगनि जोग न जानई, परै प्रेम रस माहिं।
+
डोलत मुख ऊपर लिए, प्रेम जटा की छांहि॥292॥
+
 
+
भाटिन भटकी प्रेम की, हर की रहै न गेह।
+
जोवन पर लटकी फिरै, जोरत वरह सनेह॥293॥
+
 
+
भटियारी उर मुंह करै, प्रेम पथिक की ठौर।
+
धौस दिखावै और की, रात दिखावै और॥294॥
+
 
+
पाटम्बर पटइन पहिरि, सेंदुर भरे ललाट।
+
बिरही नेकु न छाड़ही, वा पटवा की हाट॥295॥
+
 
+
सजल नैन वाके निरखि, चलत प्रेम सर फूट।
+
लोक लाज उर धाकते, जात समक सी छूट॥296॥
+
 
+
राज करत रजपूतनी, देस रूप को दीप।
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कर घूंघट पर ओट कै, आवत पियहि समिप॥297॥
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हियरा भरै तबाखिनी, हाथ न लावन देत।
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सुखा नेक चटवाइ कै, हड़ी झाटि सब देत॥298॥
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हाथ लिए हत्या फिरे, जोबन गरब हुलास।
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धरै कसाइन रैन दिन, बिरही रकत पिपास॥299॥
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गाहक सो हंसि बिहंसि कै, करत बोल अरु कौल।
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पहिले आपुन मोल कहि, कहत दही को मोल॥300॥
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13:21, 11 जून 2015 के समय का अवतरण

नैन सलोने अधर मधु, कहि रहीम घटि कौन।
मीठो भावै लोन पर, अरु मीठे पर लौन॥121॥

पन्‍नग बेलि पतिव्रता, रति सम सुनो सुजान।
हिम रहीम बेली दही, सत जोजन दहियान॥122॥

परि रहिबो मरिबो भलो, सहिबो कठिन कलेस।
बामन है बलि को छल्‍यो, भलो दियो उपदेस॥123॥

पसरि पत्र झँपहि पितहिं, सकुचि देत ससि सीत।
कहु र‍हीम कुल कमल के, को बैरी को मीत॥124॥

पात पात को सींचिबो, बरी बरी को लौन।
रहिमन ऐसी बुद्धि को, कहो बरैगो कौन॥125॥

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर बक्‍ता भए, हमको पूछत कौन॥126॥

पिय बियोग तें दुसह दुख, सूने दुख ते अंत।
होत अंत ते फिर मिलन, तोरि सिधाए कंत॥127॥

पुरुष पूजें देवरा, तिय पूजें रघुनाथ।
कहँ रहीम दोउन बनै, पॅंड़ो बैल को साथ॥128॥

प्रीतम छबि नैनन बसी, पर छवि कहाँ समाय।
भरी सराय रहीम लखि, पथिक आप फिर जाय॥129॥

प्रेम पंथ ऐसो कठिन, सब कोउ निबहत नाहिं।
रहिमन मैन-तुरंग चढ़ि, चलिबो पाठक माहिं॥130॥

फरजी सह न ह्य सकै, गति टेढ़ी तासीर।
रहिमन सीधे चालसों, प्‍यादो होत वजीर॥131॥

बड़ माया को दोष यह, जो कबहूँ घटि जाय।
तो रहीम मरिबो भलो, दुख सहि जिय बलाय॥132॥

बड़े दीन को दुख सुनो, लेत दया उर आनि।
हरि हाथी सो कब हुतो, कहु र‍हीम पहिचानि॥133॥

बड़े पेट के भरन को, है रहीम दुख बा‍ढ़ि।
यातें हाथी हहरि कै, दयो दाँत द्वै का‍ढ़ि॥134॥

बड़े बड़ाई नहिं तजैं, लघु रहीम इतराइ।
राइ करौंदा होत है, कटहर होत न राइ॥135॥

बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल॥1361।

बढ़त रहीम धनाढ्य धन, धनौ धनी को जाइ।
घटै बढ़ै बाको कहा, भीख माँगि जो खाइ॥137॥

बसि कुसंग चाहत कुसल, यह र‍हीम जिय सोस।
महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्‍यो परोस॥138॥

बाँकी चितवन चित चढ़ी, सूधी तौ कछु धीम।
गाँसी ते बढ़ि होत दुख, का‍ढ़ि न कढ़त रहीम॥139॥

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥140॥

बिपति भए धन ना रहे, रहे जो लाख करोर।
नभ तारे छिपि जात हैं, ज्‍यों रहीम भए भोर॥141॥

भजौं तो काको मैं भजौं, तजौं तो काको आन।
भजन तजन ते बिलग हैं, तेहि रहीम तू जान॥142॥

भलो भयो घर ते छुट्यो, हँस्‍यो सीस परिखेत।
काके काके नवत हम, अपन पेट के हेत॥143॥

भार झोंकि के भार में, रहिमन उतरे पार।
पै बूड़े मझधार में, जिनके सिर पर भार॥144॥

भावी काहू ना दही, भावी दह भगवान।
भावी ऐसी प्रबल है, कहि रहीम यह जान॥145॥

भावी या उनमान को, पांडव बनहि रहीम।
जदपि गौरि सुनि बाँझ है, बरु है संभु अजीम॥146॥

भीत गिरी पाखान की, अररानी वहि ठाम।
अब रहीम धोखो यहै, को लागै केहि काम॥147॥

भूप गनत लघु गुनिन को, गुनी गनत लघु भूप।
रहिमन गिर तें भूमि लौं, लखों तो एकै रूप॥148॥

मथत मथत माखन रहै, दही मही बिलगाय।
रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय॥149॥

मनिसिज माली की उपज, कहि रहीम नहिं जाय।
फल श्‍यामा के उर लगे, फूल श्‍याम उर आय॥150॥

मन से कहाँ रहिम प्रभु, दृग सो कहाँ दिवान।
देखि दृगन जो आदरै, मन तेहि हाथ बिकान॥151॥

मंदन के मरिहू गये, औगुन गुन न सिराहिं।
ज्‍यों रहीम बाँधहु बँधे, मराह ह्वै अधिकाहिं॥1521।

मनि मनिक महँगे किये, ससतो तृन जल नाज।
याही ते हम जानियत, राम गरीब निवाज॥153॥

महि नभ सर पंजर कियो, रहिमन बल अवसेष।
सो अर्जुन बैराट घर, रहे नारि के भेष॥154॥

माँगे घटत रहीम पद, कितौ करौ बढ़ि काम।
तीन पैग बसुधा करो, तऊ बावनै नाम॥155॥

माँगे मुकरि न को गयो, केहि न त्‍यागियो साथ।
माँगत आगे सुख लह्यो, ते रहीम रघुनाथ॥156॥

मान सरोवर ही मिले, हंसनि मुक्‍ता भोग।
सफरिन भरे रहीम सर, बक-बालकनहिं जोग॥157॥

मान सहित विष खाय के, संभु भये जगदीस।
बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो सीस॥158॥

माह मास लहि टेसुआ, मीन परे थल और।
त्‍यों रहीम जग जानिये, छुटे आपुने ठौर॥159॥

मीन कटि जल धोइये, खाये अधिक पियास।
रहिमन प्रीति सराहिये, मुयेउ मीन कै आस॥160॥

मुकता कर करपूर कर, चातक जीवन जोय।
एतो बड़ो रहीम जल, ब्‍याल बदन विष होय॥161॥

मुनि नारी पाषान ही, कपि पसु गुह मातंग।
तीनों तारे राम जू, तीनों मेरे अंग॥162॥

मूढ़ मंडली में सुजन, ठहरत नहीं बिसेषि।
स्‍याम कचन में सेत ज्‍यों, दूरि कीजिअत देखि॥163॥

यह न रहीम सराहिये, देन लेन की प्रीति।
प्रानन बाजी राखिये, हारि होय कै जीति॥165॥

यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय।
बैर, प्रीति, अभ्‍यास, जस, होत होत ही होय॥166॥

यह रहीम मानै नहीं, दिल से नवा जो होय।
चीता, चोर, कमान के, नये ते अवगुन होय॥167॥

याते जान्‍यो मन भयो, जरि बरि भस्‍म बनाय।
रहिमन जाहि लगाइये, सो रूखो ह्वै जाय॥168॥

ये रहीम फीके दुवौ, जानि महा संतापु।
ज्‍यों तिय कुच आपुन गहे, आप बड़ाई आपु॥169॥

ये रहीम दर-दर फिरै, माँगि मधुकरी खाहिं।
यारो यारी छाँडि देउ, वे रहीम अब नाहिं॥170॥

यों रहीम गति बड़ेन की, ज्‍यों तुरंग व्‍यवहार।
दाग दिवावत आपु तन, सही होत असवार॥171॥

यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय।
ज्‍यों जल में छाया परे, काया भीतर नॉंय॥172॥

यों रहीम सुख दुख सहत, बड़े लोग सह साँति।
उवत चंद जेहि भाँति सो, अथवत ताही भाँति॥173॥

रन, बन, ब्‍याधि, विपत्ति में, रहिमन मरै न रोय।
जो रच्‍छक जननी जठर, सो हरि गये कि सोय॥174॥

रहिमन अती न कीजिये, गहि रहिये निज कानि।
सैजन अति फूले तऊ डार पात की हानि॥175॥

रहिमन अपने गोत को, सबै चहत उत्‍साह।
मृ्ग उछरत आकाश को, भूमी खनत बराह॥176॥

रहिमन अपने पेट सौ, बहुत कह्यो समुझाय।
जो तू अन खाये रहे, तासों को अनखाय॥177॥

रहिमन अब वे बिरछ कहँ, जिनकी छॉह गंभीर।
बागन बिच बिच देखिअत, सेंहुड़, कुंज, करीर॥178॥

रहिमन असमय के परे, हित अनहित ह्वै जाय।
बधिक बधै मृग बानसों, रुधिरे देत बताय॥179॥

रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ।
जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ॥180॥