पगला पगला रूप रंग है बदली बदली भाषा है ।
सा से लेकर पाँव तलक सब बदल गयी परिभाषा है ।
आह कराहें नर्तन करतीं जीवन के चैराहे पर
घायल घायल मन का पंछी घायल सी अभिलाषा है।
क्यों न भला जीवट प्रतिभा का अंग अंग झलमल झलके
सन्त्रासों की प्रखर धार ने तिल तिल उसे तराशा है।
सोनल सोनल मधुरिम मधुरिम रश्मि भला कैसे आये ?
अन्तःपुर में तृष्णाओं का छाया सघन कुहासा हैं।
जाने क्यों ऋतुराज न आये जाने क्यों न गुलाब खिले ?
तितली कोयल भ्रमर भ्रमर में छाया सघन कुहासा है।
उपवन उपवन जीवन पाटल जाने क्यों निर्गन्ध हुआ ?
जाने किसकी नजर लगी है राईलोन ठगा सा है ?