भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राखी का त्यौहार‌ / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:52, 30 जून 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राखियों से गुलजार बजार,
आ गया राखी का त्यौहार|

मिठाई सजी दुकानों में
शॊरगुल गूंजे कानों में
रेशमी धागों की भरमार
राखियों के ढेरों अंबार
कहीं पर बेसन की बरफी
कहीं पर काजू की कतली
कहीं पर रसगुल्लॆ झक झक‌
कहीं पर लड्डू हुये शुमार|
आ गया राखी का त्यौहार|

कमलिया राखी लाई है
थाल में रखी मिठाई है
साथ में कुमकुम नारियल है
खुशी का पावन हर पल है,
बहन ने रेशम का धागा
भाई के हाथों में बांधा
भाई की आँखों में श्रद्धा
बहन की आँखों मे‍ है प्यार|
आ गया राखी का त्यौहार|

बहन‌ भाई का पावन पर्व,
रहा सदियों से इस‌ पर गर्व
जरा सा रेशम का धागा
बनाता फौलादी नाता
बहन की रक्षा करना धर्म‌
भाइयों ने समझा यह मर्म‌
बहुत स्नेहिल पावन है
भाई बहनों का यह संसार|
आ गया राखी का त्यौहार|