Last modified on 5 सितम्बर 2019, at 18:42

राख और भस्म / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी

इस समय
अपने से प्रश्न कर पूछता हूँ —

विचार कर देखो
लोग क्या कहेंगे
क्या नहीं कहेंगे

सिर्फ़ यही बात
सोचते-सोचते
जीवन के अवशिष्ट दिनों को

क्या राख और भस्म में
मिल जाने दोगे ?

मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी