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रागनी 4 / सुमित सिंह धनखड़

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बागां नै चाल पड़्या सखियाँ का टोल

1.
चाल पड़ी उमंग में भरकै,
सारी मद्द जोबन में भरकै,
एक दूसरे की चौगरदै फिरकै, कर रही थी मखौल

2.
जुबां चलै थी उनकी तर-तर तर-तर,
बाल़ चलै थी सर-सर, सर-सर,
उड़ रहा दुपट्टा फर-फर फर-फर, नहीं ख़ुशी का तोल

3.
रंग रही थी सामण के रंग में
सारी भर रही चाव उमंग में,
पर पीछै चलै थी वा न्यारे ए ढंग में
जिसका चंदा-सा मुख गोल

4.
सुमित सिंह नूर ना परिया तै घाट,
उसका रहा जोबन चक्करी काट,
गया एक और चाला पाट, खुलगी इंद्र सभा कि पोल
 
जब वे सहे लियाँ बाग़ में आती हैं तो घूमते-घूमते उनकी नज़र वहाँ गई जहाँ सुल्तान कवर चद्दर तान के सोया हुआ था और पास में घोड़ा बंधा हुआ था तो वह निहालदे सुल्तान को जगाणे का प्रयास करती है कैसे