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राग वाणी / प्रेमदिल दास

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 मनराम हरी हरी कयुँ नहि बोल्ता है ।।धु।।
हरीनाम स्वहै सब घट भीतर सोह सब जाग डुलाता है ।।
डुली डुली थकित भयो प्रभु निर्गुण नाम से भुल्ना है ।।मन।।१।।
माता पिता सुत परीवारा वासे पर नहिं भुलता है ।।
देखी चेढा मोह परतुहै मोहमें मोहमें गिरता है ।।मन।।२।।
धुजान मोरेयो जगमोहे आसा हरिपद धरता है ।।
विनाराम सुनेरुके पुतलु उडर्है मोहसे मोह गीरता है ।मन।।३।।
जैसे अन्धामें नाम न जाने तेसैवाल नहिं बुझता है ।।मन।।४।।
कहे शसिधर सुनो भाइ साधु परघट काया नहि खोलता हैं ।।
घर घर प्रेमदिल शलोत बहाई व नीर्गुण तामशे भुलता है ।।मन।।५।।