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राजधानी में / अरविन्द श्रीवास्तव

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राजधानी के सबसे व्यस्त और चर्चित नर्सिंग होम में
माँ ने दम तोड़ दिया

वह अनेमिया से पीड़ित थी और उसे
तुरंत ज़रूरत थी ख़ून की

स्थापित ब्लड-बैंकों में ख़ून के बदले ख़ून
एक दस्तूर था, एक परंपरा थी और थी
उसकी मजबूरी

राजधानी में इक्का-दुक्का ताल्लुक़ात थे मेरे
चंद फ़्राड किस्म को छोड़
शेष ने चिरौरी और मिन्नतों के पश्चात
दिया ख़ून
फिर जाकर ख़ून मिला माँ के मैचिंग का

चिकित्सकों ने और ज़्यादा ख़ून की ज़रूरत बताई
बढ़ गयी मेरी बेचैनी
खून की तलाश में भटकते-भटकते
निचुड़ चुकी थी मेरी ताक़त

मेरी ताक़त
जो कभी
मेरी माँ हुआ करती थी ।