भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राजनीति से परहेज करनेवाले बुद्धिजीवी / आतो रीनी कास्तिलो / यादवेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिन हमारे देश के
राजनीति से परहेज करनेवाले
तमाम बुद्धिजीवियों से सवाल करेंगे
हमारे देश के
मामूली से मामूली लोग..।

उनसे पूछा जाएगा —
क्या कर रहे थे वे
जब मर रहा था उनका देश
तिल तिल कर
शातिर ख़ामोशी से
सब कुछ ख़ाक करती जाती
छोटी और मामूली आग से?

कोई नहीं पूछेगा उनके कपड़े लत्तों के बारे में
या दोपहर के खाने के बाद
कितनी देर तक लेते रहते हैं वे खर्राटे
किसी की दिलचस्पी नहीं
कि क्या है उनकी शून्यता की बाँझ अवधारणा...
किसी को फर्क नहीं पड़ता
कितना ऊँचा है उनका अर्थशास्त्र का ज्ञान।

उनसे कोई नहीं पूछेगा
ग्रीक मिथकों के बारे में ताबड़तोड़ सवाल
और न ही उनकी आत्मग्लानि के बारे में किसी को पड़ी है
कि कैसे मरा उनका ही कोई बिरादर
किसी भगोड़े कायर की मौत...
किसी को नहीं फिकर
कि जीवनभर घने पेड़ की छाया तलाश कर
इत्मीनान की साँस लेने वाले सुकुमार
किस शैली में प्रस्तुत करते हैं
अपने जीने के ढब के अजीबो-ग़रीब तर्क।
 
उस दिन पलक झपकते
आस-पास से आ जुटेंगे
तमाम मामूली लोग
जिनके बारे में न तो लिखी किताब
और न ही कोई कविता
राजनीति से परहेज करने वाले
इन बुद्धिजीवियों ने लम्बे भरे-पूरे जीवन में कभी...।

इनके लिए तो यही मामूली लोग
बाज़ार से लाते रहे रोज़-रोज़ ब्रेड और दूध
दिन-भर का राशन पानी
सड़कों-गलियों में दौड़ाते रहे उनकी गाड़ियाँ
पालते रहे उनके कुत्ते और बाग़ बगीचे...।

जो इन्ही के लिए खटते रहे जीवन भर
अब वही पलट कर करेंगे सवाल —
आप लोग क्या कर रहे थे
जब ग़रीबों का जीवन होता जा रहा था दूभर
जब उनके अन्दर से कोमलता
और जीवन रस सूखता जा रहा था?

मेरे प्यारे देश के
राजनीति से परहेज करने वाले बुद्धिजीवी
आप इन सब सवालों का जवाब दे पाएँगे?

कितनी भी हिम्मत दिखला दें
नोंच-नोंच कर खा जाएगा
आपको चुप्पी का खूँखार गिद्ध..
आपकी बेचारगी बार-बार
धिक्कारती रहेगी आपकी आत्मा को।

आपको नहीं सूझेगा तब कोई रास्ता
नहीं बचेगा कोई चारा
और चुपचाप सिर झुकाकर
टुकुर-टुकर ताकते खड़े रहेंगे आप।

अँग्रेज़ी से अनुवाद — यादवेन्द्र