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राजा करन एक दानी रे उपजा / बघेली

बघेली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राजा करन एक दानी रे उपजा
करे सभा मा दान हो मां
सोनवा सोनवा सबै कोउ लइगा
कपिला दान नहिं लेइं हो मां
पश्चिम दिशा से एक जोगी आवा
लेय कपिलन का दान हो मां
काहे के खूंटा बंधै बछोलन
सोनेन कपिला गाय हो मां
रूपेन खूंटा बंधे बछोलन
सोनेन कपिला गाय हो मां
ढीलि दे बम्हना मैया हमारी
चरें नन्दन बन जाय हो मां
ढीलि दे बम्हना मैया हमारी
चरें नन्दन बन जाय हो मां
चन्दन विरवा खइचै जो सुरही
शिर पर सिंघ गलारै हो मां
आज सिंह मोही घरैं जाय दे
घर बछुला नरियाय हो मां
जात मेहरिया का पथ नहि मानौ
नहि मानउं विशुवास हो मां
काहू के तै लै ले लाग लगनिया
काहू के साख गवाह हो मां
धरती का लै ले लाग लगनिया
सूरिज का साख गवाह हो मां
रेगि चलीं है सुरही रे गइया
जब घर मुंह सौहान हो मां
औ आने दिन सुरही हुंकुरत आवइ
आज काहे अनमन आई हो मां
ढीलि दे बम्हन मोर बछोलना
बाचा मैं आई हार हो मां
तुम्हारा दूध ना पीबै हो माता
चलब चुम्हारेन साथ हो मां
आंगेन आगे सुरही रेगि चली
पीछे बछोलन जाय हो मां
चन्दन बिरवा सुरही जो खेचिस
शिर ऊपर सिंह गलारै हो मां
आगे मामा हमही भखि लेअ
पाछेन माता हमार हो मां
तुम तौ बोलेउ भैनै बछेरूआ
या बन तुम्हरे आय हो मां
छिटिक चरा तुम भैने बछेरूआ
या बन तुम्हारै आय हो मां