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राजा के अगनवा चन्दन का विरवा /बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राजा के अँगनवा चन्दन का बिरवा
अछर बिछर ओखी डार हो

वो ही तरे पूरे बबुआ सोना संकल्पै
डारे लागे सुधर सुनार हो
गढ़ सोनरा तुम आंगन कंगन
गढ़ सुनरा सोलह सिंगार हो

इतना पहिन बेटी चौक में बैठी
भरहि मोतियन मांग हो
सोनवा पहिन बेटी मण्डप में आई
आवे लागे मोतियन आंसू हो

कि मोरी बेटी अन धन कम है
कि है रमैया वर छोट हो
कौन बात बेटी मण्डप में रोई
आवे लागे मोतियन आसू हो

नाहीं तो मोरे बाबुल धन अन कम है
नहीं है रमैया वर छोट हो
आज की रैन बाबुल तुम्हारा देशवा
कल परदेहिया के देश हो
राजा के अगनवा चन्दन के विरवा...।