Last modified on 12 जुलाई 2008, at 01:45

राजा के पोखर में / बुद्धिनाथ मिश्र

ऊपर ऊपर लाल मछलियाँ
नीचे ग्राह बसे।
राजा के पोखर में है
पानी की थाह किसे।

जलकर राख हुईं पद्मिनियाँ
दिखा दिया जौहर
काश कि वे भी डट जातीं
लक्ष्मीबाई बनकर
लहूलुहान पडी जनता की
है परवाह किसे।

कजरी-वजरी चैता -वैता
सब कुछ बिसराए
शोर करो इतना कि
कान के पर्दे फट जायें
गेहूँ के संग-संग बेचारी
घुन भी रोज पिसे।

सूखें कभी जेठ में
सावन में कुछ भीजें भी
बडी जरूरी हैं ये
छोटी-छोटी चीजें भी
जाने किस दल में है
सारे नरनाह फँसे।