भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राजा / संजय कुंदन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:09, 13 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय कुंदन }} {{KKCatKavita}} <poem> वह खुद से कि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
वह खुद से कितना छोटा है कहना मुश्किल है
हो सकता है वह अपनी जेब में बैठा हुआ हो
या अपने रूमाल में बँधा हो
उसकी छाया दिखती है तन कर मंच पर खड़ी
हाथ हिलाती, मुस्कराती
वही करती दस्तावेजों पर हस्ताक्षर
मिलती राष्ट्राध्यक्षों से
देती प्रजा को आश्वासन
उसकी छाया को और ऊँचा
और उन्नत बनाने के उपायों पर
मनन करते उच्चाधिकारी, विद्वान और पुरोहित
पर इससे राजा घबराया रहता है
ज्यों-ज्यों बढ़ती जाती है उसकी छवि
वह होता जाता है और छोटा
और छोटा और छोटा।