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रात्रि में बिछोह सहनेवाली / कालिदास

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तस्मिन्‍काले नयनसलिलं योषितां खण्डिताना
     शान्तिं नेयं प्रणयिभिरतो वर्त्‍म भानोस्‍त्‍यजाशु।
प्रालेयास्‍त्रं कमलवदनात्‍सोपि हर्तुं नलिन्‍या:
     प्रत्‍यावृत्‍तस्‍त्‍वयि कररुधि स्‍यादनल्‍पाभ्‍यसूय:।।

रात्रि में बिछोह सहनेवाली खंडिता नायिकाओं
के आँसू सूर्योदय की बेला में उनके प्रियतम
पोंछा करते हैं, इसलिए तुम शीघ्र सूर्य का
मार्ग छोड़कर हट जाना, क्योंकि सूर्य भी
कमलिनी के पंकजमुख से ओसरूपी आँसू
पोंछने के लिए लौटे होंगे। तुम्‍हारे द्वारा हाथ
रोके जाने पर उनका रोष बढ़ेगा।