Last modified on 22 जून 2017, at 14:51

रात-दिन की बेकली है और मैं हूँ / शिवशंकर मिश्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:51, 22 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवशंकर मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रात-दिन की बेकली है और मैं हूँ
लाश कोई अधजली है और मैं हूँ

सच जो है, जो भी है, जैसा है वही इस
जिंदगी का झूठ भी है और मैं हूँ

मुश्किलें हैं और सब आसानियाँ हैं
एक पुरानी-सी गली है और मैं हूँ

चाहते हैं, राहते हैं, क्या नहीं है
जेब में कुछ मूँगफली है और मैं हूँ

यादें थोड़ी, थोड़े-से गम, थोड़ी खुशियाँ
‘मिशरा’ थोड़ी शायरी है और मैं हूँ