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रात के अन्तिम प्रहर / रोके दाल्तोन / राजेश चन्द्र

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जब तुम जान जाओ कि मेरी मृत्यु हो चुकी,
मेरा नाम कभी मत पुकारना
क्योंकि वापस खींच लाएगा यह
मुझे मृत्यु और विश्राम से ।

तुम्हारी आवाज, जिसमें झंकृति है
पाँचों इन्द्रियों की
धुन्धला प्रकाशस्तम्भ बन सकती है
मेरे कोहरे के आर-पार झाँकती हुई ।

जब तुम जान जाओ कि मेरी मृत्यु हो चुकी,
केवल बुदबुदाना होठों में कुछ अस्फुट से शब्द
कहना फूल, मधुमक्खी, आँसू, रोटी, तूफ़ान ।
अपने होठों को मत देना इजाज़त
कि ढूँढ़ें वे मेरे ग्यारह अक्षरों को ।

मैं शिथिल पड़ चुका हूँ, चाहा जा चुका हूँ मैं,
मैंने उपार्जित किया है अपना यह मौन ।

मत पुकारना कभी मेरा नाम
जब तुम जान जाओ कि मेरी मृत्यु हो चुकी ।

पृथ्वी के गहन अन्धियारों से भागता चला आऊँगा मैं
तुम्हारी आवाज़ सुनने के लिए।

मत पुकारो मेरा नाम, मेरा नाम मत लो
जब तुम जान जाओ कि मेरी मृत्यु हो चुकी,
मत पुकारना कभी मेरा नाम ।