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रात पहागे / ध्रुव कुमार वर्मा

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खिड़की कोती ले झांकत हे अंजोर
सभी रात पहागे।
तोर अंगना के फूल हा महकय
डारा मन मां चिरई चहकय।
खुलगे हावय, दरवाजा अऊ खोर
संगी रात पहागे॥1॥

रद्दा रेंगे के करव तियारी
जाएं बर हे दुरिहा भारी
कमजोरहा ला चलो ते अगोर
सगी रात पहागे॥2॥

धरती हा लइकोरी होगे
आगू ले जादा गोरी होगे।
खेत खार मां नाचय मन के मोर
संगी रात पहागे॥3॥

कुंभकरण के रात पहाइस,
चौदा बरस बनवास सिराइस।
आगे देवारी, तेल म बाती बोर
संगी रात रहागे॥4॥