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"रात भर / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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रात भर चलती हैं रेलें
 
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ट्रक ढोते हैं माल रात भर
 
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कारख़ाने चलते हैं
 
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कामगार रहते हैं बेहोश
 
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होशमंद करवटें बदलते हैं रात भर
 
होशमंद करवटें बदलते हैं रात भर
 
 
अपराधी सोते हैं
 
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अपराधों का कोई संबंध अब
 
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अंधेरे से नहीं रहा
 
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सुबह सभी दफ़्तर खुलते हैं अपराध के।
 
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10:51, 5 जनवरी 2010 का अवतरण

रात भर चलती हैं रेलें
ट्रक ढोते हैं माल रात भर
कारख़ाने चलते हैं

कामगार रहते हैं बेहोश
होशमंद करवटें बदलते हैं रात भर
अपराधी सोते हैं
अपराधों का कोई संबंध अब
अंधेरे से नहीं रहा

सुबह सभी दफ़्तर खुलते हैं अपराध के।