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लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=सामधेनी / रामधारी सिंह "दिनकर"]]}}{{KKAnthologyChand}}{{KKCatKavita}}<poem>रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ? मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते; और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।
रात यों कहने लगा मुझसे गगन आदमी का चाँद,<br>स्वप्न? है वह बुलबुला जल का;आदमी भी क्या अनोखा जीव आज उठता और कल फिर फूट जाता है!<br>;उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसताकिन्तु,<br>और फिर बेचैन हो जगताभी धन्य; ठहरा आदमी ही तो? बुलबुलों से खेलता, न सोता कविता बनाता है।<br><br>
मैं न बोला, किन्तु, मेरी रागिनी बोली, देख फिर से, चाँद! मुझको जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?<br>मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते<br>स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी? और लाखों बार तुझ-से पागलों आग को भी<br>चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।<br><br>क्या नहीं पहचानता है तू?
आदमी का स्वप्न? है मैं न वह बुलबुला जल का<br>जो स्वप्न पर केवल सही करते, आज उठता और कल फिर फूट जाता है<br>किन्तुआग में उसको गला लोहा बनाती हूँ, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो?<br>बुलबुलों से खेलताऔर उस पर नींव रखती हूँ नये घर की, कविता बनाता है।<br><br>इस तरह दीवार फौलादी उठाती हूँ।
मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोलीमनु नहीं,<br>देख फिर से चाँद! मुझको जानता मनु-पुत्र है तू?<br>यह सामने, जिसकी स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? कल्पना की जीभ में भी धार होती है यही पानी?<br>, आग को भी क्या वाण ही होते विचारों के नहीं पहचानता है तू?<br><br>केवल, स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करतेस्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे,<br>आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ"रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,<br>और उस पर नींव रखता हूँ नये घर कीरोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,<br>इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ।<br><br>स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।"
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी<br>'''रचनाकाल: १९४६'''कल्पना की जीभ में भी धार होती है,<br>वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,<br>स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।<br><br> स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे-<br>रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,<br>रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,<br>स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।<br><br/poem>