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रात हुआ क्या / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

रात हुआ क्या
समझ न पाये अँधियारे में

सुबह हुई
तब हमने देखा
बर्तमान है टूटा-फूटा
है भविष्य के सीने में भी
गड़ा हुआ अनरथ का खूँटा

भेद नहीं
रह गया जोई भी
है साधू औ’ हत्यारे में

रजधानी में
गाँव-गली में
बस्ती-बस्ती व्यापा भय है
नेह-नदी है सिकुड़ी-सिमटी
हुआ रात बंजर हिरदय है

रहे खोज
अंधे पावन जल
नाले के पानी खारे में