रात हुआ क्या
समझ न पाये अँधियारे में
सुबह हुई
तब हमने देखा
बर्तमान है टूटा-फूटा
है भविष्य के सीने में भी
गड़ा हुआ अनरथ का खूँटा
भेद नहीं
रह गया जोई भी
है साधू औ’ हत्यारे में
रजधानी में
गाँव-गली में
बस्ती-बस्ती व्यापा भय है
नेह-नदी है सिकुड़ी-सिमटी
हुआ रात बंजर हिरदय है
रहे खोज
अंधे पावन जल
नाले के पानी खारे में