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रात / अक्षय उपाध्याय

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नींद में लौटने के लिए स्त्री अपनी दुनिया को
समेटती है

रात स्त्री की आँखों पर उतरती है

बच्चा दौड़ता चला जाता है
अपने स्वप्नों के बीच
रात उसकी इच्छा को
बघारती है

रात को सीने में सहेजती युवती
गौने का गीत गाती है

और भोर की फ़सल अगोरता
पुरुष
रात को ओढ़ कर
अनुभव तापता है

रात की शुभकामनाओं के साथ
रात
दिन के प्रेम में डूब जाती है