Last modified on 25 अक्टूबर 2012, at 08:24

राधिका रीस भरी / शिवदीन राम जोशी

गुजरी को दही अहो मीठो लगे,
          घर माखन मांट भरे यशधारी |
परभात बहानू करे गऊ को,
        पर कृष्ण कहां रतियाँ रह सारी |
नन्द यसोधा अशिष-अशिष दे,
            गुजरी देत तुम्हे नित गारी |
शिवदीन यूँ राधिका रीस भरी,
   समझावत श्याम को श्याम की प्यारी |

रैन में चैन से सोवत हो,
       मन मोहन आँख लगे न हमारी |
तुम गोपिन के घर जाय घुसो,
        हम तो सगरी युहीं रैन गुजरी |
अब बात बनी को बनावत हो,
      कहूँ छानी छुपे अँखियाँ कजरारी |
शिवदीन यूँ राधिका रीस भरी,
  समझावत श्याम को श्याम की प्यारी |