http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4_/_%E0%A4%86%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%B7_%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A5%80&feed=atom&action=historyरानी का गीत / आशीष त्रिपाठी - अवतरण इतिहास2024-03-28T18:33:28Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4_/_%E0%A4%86%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%B7_%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A5%80&diff=97239&oldid=prevअनिल जनविजय: नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आशीष त्रिपाठी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> रथ पर चढ़कर व…2010-11-08T21:45:12Z<p>नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आशीष त्रिपाठी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> रथ पर चढ़कर व…</p>
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<poem><br />
रथ पर चढ़कर वह रोती रही<br />
महलों में भी रोई<br />
पैरों के नीचे फूलों के रास्ते<br />
खुशबू से भरी हवायें<br />
आदेश की प्रतीक्षा में<br />
सर झुकाये खड़ी बांदियों की कतार<br />
नहीं ला सकी उसके चेहरे पर<br />
सच्ची मुस्कान का एक क्षण<br />
दुनिया का सबसे अच्छा भोज भी रुचा नहीं उसे<br />
<br />
बार-बार कहती रही सबसे<br />
मैं बहुत ख़ुश हूँ, बहुत ख़ुश<br />
उसकी ख़ुशी में<br />
काला-सा हो जाता है उसका चेहरा<br />
उसे शायद मालूम नहीं<br />
मोल में बिकना<br />
(एक अवकाश प्राप्त शिक्षक अपने बेटे से)<br />
गाँव में बिकता है मज़दूर चालीस रुपये रोज में<br />
शहर में उसकी कीमत सत्तर रुपये<br />
महानगर में सौ के आस-पास<br />
यंत्री मज़दूरों के दाम<br />
भारत में आठ हज़ार प्रतिमाह से लेकर तीस<br />
हज़ार तक<br />
कस्बे का नाई सिट डाउन हेयर कटिंग सैलून में<br />
दो हज़ार माह<br />
वहीं का हेयर ड्रेसर छह हज़ार तक<br />
भोपाल में दस हज़ार के आसपास आराम से<br />
कम्प्यूटर कर्मी की कीमत रीवा में चार हजार<br />
प्रतिमाह<br />
बंगलौर में रुपये चौबीस हज़ार<br />
न्यूयार्क में आठ से दस लाख<br />
जो मोल से बिके, वही है आज मोल में<br />
जब बिकना ही है उनके हाथों<br />
तो बेहतर से बेहतर बिकना<br />
देखो कोई कह न सके<br />
कि इसमें तो लच्छन ही नहीं बिकने के<br />
और उसकी तमीज नहीं आयेगी यूँ ही<br />
खूब तैयार करो<br />
शोषण-चक्र में सबसे अच्छे दामों बिकने की<br />
जब तय ही है तो<br />
मोल से बिकना और मोल में रहना<br />
कोशिश करना कि<br />
बिक सको न्यूयार्क, लंदन, वाशिंगटन में<br />
कम से कम हैदराबाद, बंगलौर या मुंबई में बिकना<br />
और जब कुढ़न हो अपने मोल से<br />
अपने बाप के बारे में सोचना<br />
जो बिका नहीं जीवन भर<br />
पर अंत में जीवन के<br />
तुमसे कहता रहा- 'मोल से बिकना'<br />
</poem></div>अनिल जनविजय