तिरछी ढलानों पर
सीधे तने खड़े हैं देवदार
आकाश के नीले कैनवस पर
कुछ लिखना चाहती हैं
उनकी नुकीली फुनगियाँ..
यह हिमालय है
यहाँ कौन नहीं है कवि
कौन नहीं बनना चाहता है चित्रकार !
तिरछी ढलानों पर
सीधे तने खड़े हैं देवदार
आकाश के नीले कैनवस पर
कुछ लिखना चाहती हैं
उनकी नुकीली फुनगियाँ..
यह हिमालय है
यहाँ कौन नहीं है कवि
कौन नहीं बनना चाहता है चित्रकार !