भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रामदीन / राम सेंगर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:02, 6 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम सेंगर |अनुवादक= |संग्रह=ऊँट चल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज्यों का त्यों
अब भी है काँटा
रामदीन की आँख का ।

खेत चर रहीं मेंड़
भेड़ बाड़े को रौन्द रही ।
कुतर रहा नाख़ून
पेट में बिजली कौन्ध रही ।
ऋतु बदली, पर
अभी हरा है
फोड़ा उसकी काँख का ।

बिम्ब अभी मन में
सूरज का
बना हुआ काला ।
घुसा हुआ पूरा सीने में
पूँजी का भाला ।
दबा रहेगा
कब तक जाने
यह अँगारा राख का ।

ज्यों का त्यों अब भी है काँटा
रामदीन की आँख का ।