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रामरसोई / अजन्ता देव

तुम्हारी जिह्वा
ठाँव-कुठाँव टपकाती है लार
इसे काबू करना तुम्हारे वश में कहाँ
तुमने चख लिया है हर रंग का लहू

परन्तु एक बार आओ
मेरी रामरसोई में
अग्नि केवल तुम्हारे जठर में नहीं
मेरे चूल्हे में भी है

यह पृथ्वी स्वयं हांडी बनकर
खदबदा रही है

केवल द्रौपदियों को ही मिलती है
यह हांडी
पाँच पतियों के परमसखा से ।