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पा महानिलय उस तन में क्षण में हुए लीन,<br>
लख शंकाकुल हो गये अतुल बल शेष शयन,<br>
खिच खिंच गये दृगों में सीता के राममय नयन,<br>
फिर सुना हँस रहा अट्टहास रावण खलखल,<br>
भावित नयनों से सजल गिरे दो मुक्तादल।<br><br>
रावण महिमा श्यामा विभावरी, अन्धकार,<br>
यह रूद्र राम पूजन प्रताप तेजः प्रसार,<br>
इस उस ओर शक्ति शिव की जो दशस्कन्धपूजित,<br>उस इस ओर रूद्रवन्दन जो रघुनन्दन कूजित,<br>
करने को ग्रस्त समस्त व्योम कपि बढ़ा अटल,<br>
लख महानाश शिव अचल, हुए क्षण भर चंचल,<br>
श्यामा के पद तल भार धरण हर मन्दस्वरमन्द्रस्वर<br>
बोले "सम्वरो, देवि, निज तेज, नहीं वानर<br>
यह, नहीं हुआ श्रृंगार युग्मगत, महावीर।<br>
वह नहीं देखकर जिसे समग्र वीर वानर<br>
भल्लुक विगत-श्रम हो पाते जीवन निर्जर,<br>
रघुवीर, तीर सब वही तूण में है हैं रक्षित,<br>
है वही वक्ष, रणकुशल हस्त, बल वही अमित,<br>
हैं वही सुमित्रानन्दन मेघनादजित् रण,<br>
कितना श्रम हुआ व्यर्थ, आया जब मिलनसमय,<br>
तुम खींच रहे हो हस्त जानकी से निर्दय!<br>
रावण? रावण लम्प्टलम्पट, खल कल्म्ष गताचार,<br>
जिसने हित कहते किया मुझे पादप्रहार,<br>
बैठा उपवन में देगा दुख सीता को फिर,<br>
राघव ने विदा किया सबको जानकर समय,<br>
सब चले सदय राम की सोचते हुए विजय।<br>
निशि हुई विगतः नभ के ललाट पर प्रथमकिरणप्रथम किरण<br>
फूटी रघुनन्दन के दृग महिमा ज्योति हिरण।<br><br>
कुछ लगा न हाथ, हुआ सहसा स्थिर मन चंचल,<br>
ध्यान की भूमि से उतरे, खोले पलक विमल।<br>
देखा, वहाँ वह रिक्त स्थान, यह जप का पूर्ण समय,<br>
आसन छोड़ना असिद्धि, भर गये नयनद्वय,<br>
"धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध,<br>
दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,<br>
मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर<br>
श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन स्वर वन्दन कर।<br><br>
"होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।"<br>
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।<br><br>
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