Last modified on 29 नवम्बर 2019, at 00:03

राम खड़े हैं भवसागर में / शिवम खेरवार

राम खड़े हैं भवसागर में,
केवट तुम ही पार लगाओ.

बिना तुम्हारे वचन अधूरे,
यज्ञों का उपसर्ग अधूरा।
बिना तुम्हारे साथी केवट,
मंज़िल का हर सर्ग अधूरा।

शांत नदी की गहरी हलचल,
आकर तुम इनको दिखलाओ.
केवट तुम ही पार लगाओ.

बिना तुम्हारे विस्मृत राहें,
सही-ग़लत चुनना है मुश्किल।
बिना तुम्हारे निर्णय लेकर,
शून्य 'राम' को होगा हासिल।

राम साधना के भागी बन,
तुम भी थोड़ा पुण्य कमाओ.
केवट तुम ही पार लगाओ.

लंका की पहली सीढ़ी हो,
रामायण उद्घोषक तुम हो।
रघुवर की आशा के दीपक,
प्रीति भाव के पोषक तुम हो।

अपने कर्तव्यों को केवट,
चप्पू खेकर चलो निभाओ. ।