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राम नाम के नदी बहल जाय, चाहे जो ले नहाय / करील जी

राम नाम के नदी बहल जाय, चाहे जो ले नहाय॥धु्रव॥
कलिजुग में भैया न कोनो उपाय।
राम नाम गाइ जीव भव तरि जाय॥चाहे जो.॥1॥
नदिया में नदी बहल गौर-निताय।
पापिहु तरि गेल जगाय मधाय॥चाहे जो.॥2॥
गिरि रे कैलाश एक जोगी सोहाय।
सेहो नित रामनाम जपि रहे भाय॥चाहे जो.॥3॥
जो एहि नदी में नहाय मन लाय।
सो जीव देखि जम दूरहिं पराय।चाहे जो.॥4॥
उमगि ‘करील’ प्रभु के गुन गाय।
जनम-जनम के जरनि जुड़ाय।चाहे जो.॥5॥