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राम सहाय तो भय व्यर्थ / शब्द प्रकाश / धरनीदास

हाथि कन्ध पाय सोन श्वानते शँकाय, वान चंदको चलाय तौ जलाय आपुही ढरै।
रूखी जो रुखाय रूख सूख तो न जाय, धरनी कहै वजाय श्वान लाय सिंह को लरै॥
छोरि मुख वाय तो न काँहडा समाय, जोन्हि जाल क्याँ बझाय जौ उपाय कोटि कै मरै।
मँढकी सुआय जोट ऊँटते न खाय, एक राम जो सहाय तो रिसाय कोउका करै॥34॥