हाथि कन्ध पाय सोन श्वानते शँकाय, वान चंदको चलाय तौ जलाय आपुही ढरै।
रूखी जो रुखाय रूख सूख तो न जाय, धरनी कहै वजाय श्वान लाय सिंह को लरै॥
छोरि मुख वाय तो न काँहडा समाय, जोन्हि जाल क्याँ बझाय जौ उपाय कोटि कै मरै।
मँढकी सुआय जोट ऊँटते न खाय, एक राम जो सहाय तो रिसाय कोउका करै॥34॥