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राम / ध्रुव कुमार वर्मा

कउवा, बधवा, बेदरा, भालू,
राम नाव मा तरगे।
राम बिना दशरथ महराजा,
खुरच खुरच के मरगे।
जूठा बोइर खवा खवा के,
खवरी मुक्ती पाइस।
ओकर पांव के धुर्राल पाके
पथरा हा उड़ियाइस।

राज पाट अऊ घर दुवार ल,
कचरा सही त्यागिस।
सबला पार उतारै जेहा
तेहा डोंगा मागिस।
दया मया ला जोरे खातिर
बनवासी बन घूमिस।
थकहा मन ला छाती मं लेके
भुलवारिस अऊ चूमिस।

खोखमा फूल अस सुघ्घर,
कुंवर जेकर रहिस पांव।
कइसे भटकिस जंगल झाड़ी
खेत खार अऊ गांव।
कभू सुख के छइहा जिनगी,
कभू दुख के घाम।
जेहा दूनो ल एक्े जानय,
तेला कइथे राम।

चारो मूड़ा धरती मां जब
छा जाथें अंधियार।
पाप करम मां बूड़े मनखे,
हो जाथे गरियार।
लबरा चोरहा दोगला मनके,
बाढ़े लगथे मान।
चतुरा बनके गदहा अइठय
घोड़ा हाथी के कान।

कोनो टोरे सकय नहीं जब
धनुष अंध विश्वास के।
स्वारथ के कैकई रचथे
रचना सत्यानाश के।
जब असत्त के रावण तपथे,
जइसे जेठ के घाम।
तब धरती मां होथे पैदा
सत्त करम के राम।

राम जेनहा गिरे परे ला,
डेना धरके उठाथे।
जात पांत ले अऊर धरम ले
करम ला ऊंच बताथे।
ओकर राज में हिरना बघवा
संगे पानी पीथे।
धोबी घलो हा मान ल पाके
ए धरती मां जीथे।
आज राम के पूजा होथे
रामायण ल पढ़थन।
सिरतोर बोलव, के झन इहां
सत के घोड़ा चढ़ थन।

मोर देश के मनखे मन जब
चलही राम के चाल।
पद के लालच छोड़के करही
परमारथ के काज।
ए धरती के माटी चंदन
बनही अऊ ममहाही।
जब सीता अस सब्बो बेटी
बहू बनके आही।
एक राम हा कतको लक्ष्मण
सीता भरत बनाथे।
ए राम ले बंदरा घलो
बजरंग बली कहाथे।

अइसे करम करन कि हमर
जस के बगरै नाम।
हमर विपत ला टारे खातिर
दउरत आवै राम।